फिर से दो हफ्ते बढ़ा लॉकडाउन: ऐसा हो सकता है लॉकडाउन के बाद का भारत

फिर से दो हफ्ते बढ़ा लॉकडाउन: ऐसा हो सकता है लॉकडाउन के बाद का भारत

नरजिस हुसैन

पूरी दुनिया समेत भारत में लगातार कोरोना वायरस के पॉजिटिव मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसे देखते हुए लगभग सभी देशों ने कुछ-कुछ वक्त के लिए लॉकडाउट और सोशल डिस्टैंसिंग भी लागू किया। अभी कुछ वक्त पहले से इसमें एक नया मोड़ ये आया कि ज्यादातर कोरोना पॉजिटिव लोगों के टेस्ट सैंपल नेगेटिव आने शुरू हो गए इन्हें एसिम्टोमैटिक कहा जाता है। भारत सरकार ने 25 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लगाया था ताकि कम वक्त में तेजी से फैलते हुए संक्रमण को रोका जा सके। इस लॉकडाउन में सरकार ने सैनिटाइजर, हाथों को बार-बार धोना, सोशल डिस्टैनसिंग, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों की ट्रेसिंग और आइसोलेशन या क्वारेनटाइन के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जागरुकता फैलाई।

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हालांकि, देश की मेडिकल रिसर्च की सबसे बड़ी संस्था आईसीएमआर ने 15 फरवरी से ही कोरोना के मामलों की निगरानी करनी शुरू कर दी थी। 11 मार्च को 12 देशों से भारत आ रहे यात्रियों के क्वारेटाइन के आदेश दिए जा चुके थे और सरकार ने इस बीच जितने भी वीजा जारी किए थे सब रदद कर दिए। 16 मार्च को सरकार ने प्राइवेट सेक्टर में काम कर रहे लोगों को वर्क फ्राम होम की सलाह देते हुए सोशल डिस्टैंसिंग की एजवाइजरी जारी की। 17 अप्रैल को सभी सिनेमा घर, स्कूल, कॉलेज, शिक्षा संस्थानों और म्यूजियम बंद कर दिए। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने सभी जरूरी समानों के अलावा सब सुविधआएं बंद करने और जनता कर्फ्यू की अपील की। 21 मार्च को सुबह 7-9 बजे तक जनता कर्फ्यू रहा। और इसके बाद 24 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया और विदेशों से आनी वाली हवाई सेवाएं भी बंद कर दीं। 25 मार्च को डिसास्टर मैनेंजमेंट ऐक्ट, 2005 पूरे देश में लागू किया गया। ये तमाम वो कदम हैं जो भारत सरकार ने कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए उठाए।  

भारत में कोविड-19 के जनवरी के आखिरी हफ्ते में कुल 4 मामले थे जो चार मार्च आते-आते 28 हो गए। लॉकडाउन की शुरूआत के करीब यानी 28 मार्च तक ये मामले बढ़कर 909 तक पहुंच गए जिसमें 5 फीसद मरीज अस्पतालों में भर्ती थे। वक्त बढ़ता गया और इसके साथ कोविड के मामले भी बढ़ते-बढ़ते 9 अप्रैल तक देश के 31 राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों में फैल गए। सरकार ने इसके बाद टेस्टिंग की रफ्तार बड़े पैमाने पर बढ़ा दी। भारत सहित विश्व सरकारों ने संक्रमित व्यक्ति के लिए आइसोलेशन और क्वारेन्टाइन का बंदोबस्त अस्पतालों से बिल्कुल अलग या तो मरीज के घर या अन्य जगहों पर किया ताकि आने वाले वक्त में अस्पताल वायरस का केन्द्र न बनने पाए।   

21 दिनों के लॉकडाउन का सबसे बड़ा फायदा जो माना जा रहा है वह यह कि सरकार इस बंद के बीच अपने अस्पतालों और हेल्थकर्मियों को महामारी से निपटने के लिए तैयार कर पाई। सोशल डिस्टेंसिंग से संक्रमण का फैलाव जिस तरह रोका गया अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक पूरे देश की स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो चुकीं होती। कोविड-19 के मरीजों की बेहतर देखभाल के तरीके भी डॉक्टर समझ पाएंगे जिससे भविष्य में संक्रमण फैलने न पाए। इसके अलावा सरकार को समय मिला जिसमें वह अपना स्वास्थ्य सेक्टर का बुनियादी ढांचा मजबूत तरीके से खड़ा कर पाए और कोविड के इस दौर में ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इस सेक्टर रोजगार दे पाए। लॉकडाउन ने देश के उन हजारों डॉक्टरों, नर्सों और सफाईकर्मियों की जान भी बचाई जिनके पास मास्क, दस्ताने और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट यानी पीपीई अगर न होता तो मरीज को ठीक करने से पहले खुद ही वायरस का शिकार बन चुके होते। सरकार ने इस लॉकडाउन में कई देशों से मास्क, दस्तानों और पीपीई खरीदे।

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कुछ-कुछ अर्से बाद अगर सरकार इस लॉकडाउन में ढील देती है तो बुरा नहीं है लेकिन, लॉकडाउन के नियम सख्त बने रहे उसी में सबकी भलाई है क्योंकि अगर संक्रमण फैला तो भारत के पास फिलहाल न तो इतने अस्पताल हैं और न ही इतने वेंटिलेटर जो कोविड के एकदम से बढ़े मरीजों का इलाज कर पाए। लेकिन, इन सबके बीच एक बात जो बेहद जरूरी है वह यह कि लॉकडाउन के नियम और नीति को लेकर केन्द्र और राज्यों या राज्यों के बीच आपस में ही मतभेद या खींचतान न हो। नहीं तो नीतियों में तालमेल गड़बड़ाएगा और लंबे लॉकडाउन से ऊबी हुई जनता भी सरकार का साथ नहीं दे पाएगी।

अब लॉकडाउन के बाद वायरस के फैलाव का क्या असर हुआ या होगा यह तो 3 मई के बाद ही पता चलेगा (अगर लॉकडाउन को और आगे न बढ़ाया गया तो) लेकिन, इससे पहले हमें यानी एक जिम्मेदार भारतीय और उसकी चुनी एक जिम्मेदार सरकार को क्या करना चाहिए इस पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है। क्योंकि कोविड-19 ने  दुनिया को पूरी तरह से हिला दिया है। इसमें लाखों जानें गई और लाखों ही लोगों के रोजगार भी। लाखों लोगों ने मरीजों की जान बचाने के लिए दिन-रात काम किया तो वहीं लाखों लोग अपने घर-परिवार से दूर रहे। कोविड ने दुनिया में पिछले 30 सालों से आर्थिक विकास का जो मॉडल अमीर देशों ने खड़ा किया था उसे चुनौती दी है। इस मॉडल ने पर्यावरण, गरीबों और असमानता को दरकिनार कर जिस तेजी से विकास को आगे बढ़ाया था कोविड ने उसकी पोल खोल दी है। मेडिकल सुप्रीमेसी के बावजूद भी अमीर देशों में लोग मरे उन्हें टेस्ट किट या मलेरिया की दवाईयों के बहाने ही अपने से कमतर देशों से मदद मांगनी पड़ी।  

मौजूदा लॉकडाउन से हमें कुछ वक्त के लिए ही सही फायदे तो मिल रहे हैं चाहे वो लोगों की मदद हो, गरीबों के लिए दयाभाव या फिर पर्यावरण को मिलती दूसरी जिंदगी। अब ये भी हम सबका फर्ज है कि इन कुछ अर्से के फायदों को किस तरह लंबे वक्त के फायदों में तब्दील करें। जानकारों का कहना है कि सबसे पहले हमें जीडीपी बढ़ाने के लिए तय पैमानों से अलग उन सेक्टरों को बढ़ावा देना होगा जिनमें निवेश की सबसे ज्यादा जरूरत है जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ ऊर्जा और इसी तरह अन्य सेक्टरों पर ध्यान देना ही होगा और बेहद खपत वाले सेक्टरों को बढ़ने से रोकना होगा जिनमें- खनन, गैस, तेल, एडवर्टाइजिंग वगैरह आते है। दूसरा, हमें या सरकार को केयर वर्क और जरूरी जन सेवाओं जैसे- स्वास्थ्य और शिक्षा का महत्व समझकर उन्हें पहचान देनी होगी। तीसरा, कृषि के तरीकों में बदलाव लाकर जैव विविधता संरक्षण, स्थानीय सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के साथ इस सेक्टर में वाजिब रोजगार और वेतन तय करना होगा।

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चौथा, बेवजह की यात्राओं और आवाजाही को रोकना होगा। जहां बहुत जरूरी हो वहीं यात्रा करनी होगी जिससे पर्यावरण खुशहाल बना रहे। और पांचवा, छोटे और मझोले उद्यमियों, नौकरीपेशा और किसानों के कर्जों की माफी जैसे कदम सरकार को उठाने होंगे। हालांकि, इनमें से कुछ कदम उठाने सच में सरकारों के लिए मुश्किल होंगे लेकिन, कोरोना और लॉकडाउन के बाद जिस तरह से बदलती हुई दुनिया की तस्वीर जानकार देख पा रहे हैं उसमें इनमें से बताई हुई बातों को मानने के बाद ही हम सही मायनों में विकास की राह पर आगे बढ़ पाएंगे। नहीं तो एक तरफ जहां कोरोना ने लोगों की जान ली वहीं दूसरी तरफ कहीं ऐसा न हो कि आर्थिक मंदी दोबारा लोगों की जान लेने की जिम्मेदार बन जाए।

(फोटो साभार- द प्रिंट)

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